शनिवार, 8 जुलाई 2023

ऐ सावन बता दे तू क्या चाहता है


 ऐ सावन तू इतना क्यूँ इतराता है ...

बन के काजल क्यूँ आँखों में समा जाता है ....

फिर लगता बरसने यूं बेबाक सा तू....

 ऐ सावन बता दे तू क्या चाहता है..


जानता है क्या तू भी ख्वाहिश मेरी....

या फिर करता है तू भी ठिठौली मेरी .....

रूप है रंग है,तु मेरे संग है ...

फिर क्यों बरसें बन बरखा हम दोनों बता.....


मैं आँखों से बरसूँ, तू अम्बर से बरसे...

मैं बिरहा में तरसूं,तू बिरही को तरसे....

आख़िर तेरा मेरा ये नाता है क्या ?....

ऐ सावन बता दे तू क्या चाहता है।

मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

मैं कहलाऊं रजनी तुम्हारी..............



रजनीगन्धा तुम जान गयीं...
हाल   मेरे  अंतर  मन का।।
पर वो न समझे जिनको समझा...
था सार मैंने आपने जीवन का।।

महकी महकी चंचल तुमसी मैं...
पर पल पल प्रेम को तरसी मैं।।
कभी  मुरझायी  कभी लर्जायी...
वन विराह की बदली बरसी मैं।।

सोचा  था  मैंने  रजनी...
मैं उनके गले का हर बनूँ।।
महका दूँ तन मन जीवन...
ऐसा अनुपम उपहार बनूँ।।

पर मन की मेरे मन में ही रही...
जो  कहनी  थी वो भी  न कही।।
तुम बनो मेरे राजेश प्रिये ...
मैं  कहलाऊं  रजनी  तुम्हारी ।।
मैं  कहलाऊं  रजनी  तुम्हारी ।।

पिंकी वाजपेयी ..............

एक बूँद तेरी है मधुशाला..........


                                     
 पावन हैं तेरे कदमो के निशाँ ,दो बूंद मिले मिल जाए जहान।
जीवन के लिए तू अमृत है ,सावन के लिए तू जीवन दान।।


कहने को तू है रंगहीन , पर रंगों में आनोखा रंग तेरा।
तू गंगा में तू सतलुज में , सब नदियों में संगम तेरा।



  झरने ,नदियाँ  सब स्रोत तेरे , अम्बर है तेरा जीवन प्राण।
     धरती से गहरा प्रतिशत तेरा ,सागर में है तेरा प्रलय गान।।





वृक्ष तरु सब  तेरे सखा ,तुझ से ही खिलती वसुंधरा।
  बादल भी बने चाकर तेरे ,और दास बना चातक तेरा।।

   

पाकर  के तेरी  मधुर ताल , झूम उठी  यौवन बाला।
          मधुमास के सुन्दर मौसम में,एक बूँद तेरी है मधुशाला।। 


                                                                                 पिंकी वाजपेयी ................................

शुक्रवार, 22 मार्च 2013

होली


होली नाम है पवित्रता का
प्रीत का और मित्रता का,

होली नाम है गुलाल का
आबीर का और ताल का,

होली रंग भी है राग भी
और प्रेम का अनुरग भी,

होली धर्म भी है जीत भी
और प्रेमियों कि प्रीत भी है,

होली राम है रहीम भी
अल्लाह और मीर भी है,

होली राधा है मोहन है
मीरा और हीर भी है,

होली हुडदंग भी है
मस्ती और उमंग भी है,

होली मधुमास भी है
नॄत्य ओर रास भी है,

होली राग भी है फाग भी
बिरही का बिराग भी है,

होली ढोल भी है पोल भी
गोपियों का झोल भी है,

होली नाम है बंधुता का
रिश्तों कि अटूटता का,

होली नाम है मान,स्वाभिमान का
एक दूजे के समामन का ||

                                                   
   आप सभी को होली कि हार्दिक शुभ कामनायै...................               

                                           


शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

सपनों के पंख

सपनों के पंख लिए फिरती थी |
मैं भी एक उमंग लिए फिरती थी ||

आरमान था मुझे भी ,
जन्नत के सितारों का..
इस लिए जुल्फों को ,
हर पल संभाला करती थी ||


सपनों के पंख लिए फिरती थी |
मैं भी एक उमंग लिए फिरती थी ||

उसकी तस्बीर सिरहाने रख कर,
अपने जज्बात बयां करती थी |
कुछ सवालों से जवाव ,और कुछ
जवावों से सवाल किया करती थी ||


सपनों के पंख लिए फिरती थी |
मैं भी एक उमंग लिए फिरती थी ||

छू लूँ आसमां मैं ,
ये तमन्ना थी | मेरी भी..
इस लिए तकदीर में,
मेहनत के पैबंद सिया करती थी ||

सपनों के पंख लिए फिरती थी |
मैं भी एक उमंग लिए फिरती थी ||

गुरुवार, 20 मई 2010

काँच की काया

काँच की  काया
जो शोभा थी झरोखों की
काम था जिसका अटारियों  से झांकना
और ताकना घोर है कितना अँधेरा
लोग है बौने बाजारों में
और वह ऊँची सदा बेशक बंद
शिख्चो , दरवाजो में |

पर रुख लिया था बदल
जिंदगी ने अब उसकी
रह ली उसने खुद उन बाजारों की
जहाँ लोग दिखते थे उसे बौने |

छोड़  कर  शीश  महलो को 
ढूंढ़ ली उसने बहुमंजिली इमारते |
जहाँ मिली उसे नयी पहचान
उसका अपना एक अस्तित्व
कांच का केविन ,टेबल ,कुर्सी | |

पर फिर वही असमंजस्य
आज भी वहां दिखते है
लोग उसे  बौने |
जो कभी दिखा करते थे | 
उसे उन शीश महलो से
उनके बीच पहुँच  कर भी
ऊँची  ही नज़र आती "वह "
छूने भर से मैली हो जाने वाली
काँच की काया || 

बुधवार, 27 जनवरी 2010

खुदा भी मेरा न था|

वो रेहगुजर मेरा न था |
वो कारवाँ मेरा न था ||
कश्तियाँ सहमी हुई थी |
शाहिल भी मेरा न था ||


लेकर उम्मीदें  जशन  की
जब कर दिए रोशन चराग |
पर आंधियाँ बहकी हुई थी |
वकत  भी  मेरा  न  था ||

इल्म था उसको भी मेरी
बेपनाह  मोहब्त  का |
पर छोड़ कर मुझको गया |
वो  बेवफ़ा  मेरा  न  था  ||

मन्नतों पर मन्नतें की
सजदे किये शामोश्हर |
पर चाहतें बिखरी सभी
शायद खुदा भी मेरा न था ||

गज़ल

छेड कर सांसो को मेरी   
गुनगुनाता है कोई .....
दूर होकर भी न जाने,
क्यों ? पास आता है कोई..

लफ्जो  से  कर  दूँ  बयां......
पर किस्सा दीवाने दिल का है |
जो  इश्क  करता है  किसी  से
वो  जानता   है  आशिकी.....

छेड कर सांसो को मेरी
गुनगुनाता  है  कोई .....
दूर होकर  भी  न  जाने,
क्यों ? पास आता है कोई..


जो याद में उनकी गुजरे
लम्हे  वो  संजीदा  थे |
पर आंसुओं  का क्या करें
जो हाल कहते हैं | सभी ...


छेड कर सांसो को मेरी
गुनगुनाता है कोई .....
दूर होकर भी न जाने
क्यों ? पास आता है कोई....

मंगलवार, 10 नवंबर 2009

मतवाला सा चाँद...

सर्दियों की रात
और ठिठुरा हुआ सा चाँद ...
धुंध के आगोश में
लिपटा हुआ सा चाँद ...


तनहा आकेला खोजता
एक पनाह नन्हा सा चाँद ...
कभी छत पर कभी मुंडेर पर
कभी सीखचों के बीच से
झांकता अदना सा चाँद ...


यायावरी सा घूमता
कभी देश भी परदेश भी...
पल यहाँ पल में वहाँ
मिनटों में होती पेशगी...
फिर भी बेचारा वे पनाह
मस्त मतवाला सा चाँद...


फिक्र में दुनिया की वो
नंगे बदन है जगता...
भेद लाखों हैं ह्रदय में
मूक सा वह ताकता...
हर रात जाने किस गम में घुलता
वह पूर्णिमा का चाँद ||