ऐ सावन तू इतना क्यूँ इतराता है ...
बन के काजल क्यूँ आँखों में समा जाता है ....
फिर लगता बरसने यूं बेबाक सा तू....
ऐ सावन बता दे तू क्या चाहता है..
जानता है क्या तू भी ख्वाहिश मेरी....
या फिर करता है तू भी ठिठौली मेरी .....
रूप है रंग है,तु मेरे संग है ...
फिर क्यों बरसें बन बरखा हम दोनों बता.....
मैं आँखों से बरसूँ, तू अम्बर से बरसे...
मैं बिरहा में तरसूं,तू बिरही को तरसे....
आख़िर तेरा मेरा ये नाता है क्या ?....
ऐ सावन बता दे तू क्या चाहता है।