बुधवार, 27 जनवरी 2010

खुदा भी मेरा न था|

वो रेहगुजर मेरा न था |
वो कारवाँ मेरा न था ||
कश्तियाँ सहमी हुई थी |
शाहिल भी मेरा न था ||


लेकर उम्मीदें  जशन  की
जब कर दिए रोशन चराग |
पर आंधियाँ बहकी हुई थी |
वकत  भी  मेरा  न  था ||

इल्म था उसको भी मेरी
बेपनाह  मोहब्त  का |
पर छोड़ कर मुझको गया |
वो  बेवफ़ा  मेरा  न  था  ||

मन्नतों पर मन्नतें की
सजदे किये शामोश्हर |
पर चाहतें बिखरी सभी
शायद खुदा भी मेरा न था ||

4 टिप्‍पणियां:

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  2. पता नहीं कवियों को कैसी लगे पर अपने को तो पंसद आयी, लिखती रहा करें...

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  3. मन्नतों पर मन्नतें की
    सजदे किये शामोश्हर |
    पर चाहतें बिखरी सभी
    शायद खुदा भी मेरा न था ||
    Bahut sundar alfaaz..sirf wartani kahin,kahin galtiyan hain..jaise:Shamoseher hona chahiye! Bura to nahi mana?

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