जो शोभा थी झरोखों की
काम था जिसका अटारियों से झांकना
और ताकना घोर है कितना अँधेरा
लोग है बौने बाजारों में
और वह ऊँची सदा बेशक बंद
शिख्चो , दरवाजो में |
पर रुख लिया था बदल
जिंदगी ने अब उसकी
रह ली उसने खुद उन बाजारों की
जहाँ लोग दिखते थे उसे बौने |
छोड़ कर शीश महलो को
ढूंढ़ ली उसने बहुमंजिली इमारते |जहाँ मिली उसे नयी पहचान
उसका अपना एक अस्तित्व
कांच का केविन ,टेबल ,कुर्सी | |
पर फिर वही असमंजस्य
आज भी वहां दिखते है
लोग उसे बौने |
जो कभी दिखा करते थे |
उसे उन शीश महलो से
उनके बीच पहुँच कर भी
ऊँची ही नज़र आती "वह "
छूने भर से मैली हो जाने वाली
काँच की काया ||
पर फिर वही असमंजस्य
जवाब देंहटाएंआज भी वहां दिखते है
लोग उसे बौने |
जो कभी दिखा करते थे |
उसे उन शीश महलो से
उनके बीच पहुँच कर भी
ऊँची ही नज़र आती "वह "
छूने भर से मैली हो जाने वाली
काँच की काया ||
Oh ! "use" log band cabin aur show case me hi pasand karte hain..Hasraten bhi wahi qaid ho jati hain..