बुधवार, 27 जनवरी 2010

खुदा भी मेरा न था|

वो रेहगुजर मेरा न था |
वो कारवाँ मेरा न था ||
कश्तियाँ सहमी हुई थी |
शाहिल भी मेरा न था ||


लेकर उम्मीदें  जशन  की
जब कर दिए रोशन चराग |
पर आंधियाँ बहकी हुई थी |
वकत  भी  मेरा  न  था ||

इल्म था उसको भी मेरी
बेपनाह  मोहब्त  का |
पर छोड़ कर मुझको गया |
वो  बेवफ़ा  मेरा  न  था  ||

मन्नतों पर मन्नतें की
सजदे किये शामोश्हर |
पर चाहतें बिखरी सभी
शायद खुदा भी मेरा न था ||

गज़ल

छेड कर सांसो को मेरी   
गुनगुनाता है कोई .....
दूर होकर भी न जाने,
क्यों ? पास आता है कोई..

लफ्जो  से  कर  दूँ  बयां......
पर किस्सा दीवाने दिल का है |
जो  इश्क  करता है  किसी  से
वो  जानता   है  आशिकी.....

छेड कर सांसो को मेरी
गुनगुनाता  है  कोई .....
दूर होकर  भी  न  जाने,
क्यों ? पास आता है कोई..


जो याद में उनकी गुजरे
लम्हे  वो  संजीदा  थे |
पर आंसुओं  का क्या करें
जो हाल कहते हैं | सभी ...


छेड कर सांसो को मेरी
गुनगुनाता है कोई .....
दूर होकर भी न जाने
क्यों ? पास आता है कोई....