मंगलवार, 10 नवंबर 2009

मतवाला सा चाँद...

सर्दियों की रात
और ठिठुरा हुआ सा चाँद ...
धुंध के आगोश में
लिपटा हुआ सा चाँद ...


तनहा आकेला खोजता
एक पनाह नन्हा सा चाँद ...
कभी छत पर कभी मुंडेर पर
कभी सीखचों के बीच से
झांकता अदना सा चाँद ...


यायावरी सा घूमता
कभी देश भी परदेश भी...
पल यहाँ पल में वहाँ
मिनटों में होती पेशगी...
फिर भी बेचारा वे पनाह
मस्त मतवाला सा चाँद...


फिक्र में दुनिया की वो
नंगे बदन है जगता...
भेद लाखों हैं ह्रदय में
मूक सा वह ताकता...
हर रात जाने किस गम में घुलता
वह पूर्णिमा का चाँद ||

9 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! चाँद पर अभिकल्पना प्यारी सी लगी.
    सुलभ - यादों का इंद्रजाल

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  2. Matwaalee kavita ke saath sundar tasveer...!

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  3. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढ़े और अपनी बहुमूल्य
    टिप्पणियां करें

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  4. bahut bahut khoob likhte raho dost swagat hai.....
    Jai Ho mangalmay Ho

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  5. चाँद की व्यथा का सुन्दर मानवीय चित्रण ...

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