मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

मैं कहलाऊं रजनी तुम्हारी..............



रजनीगन्धा तुम जान गयीं...
हाल   मेरे  अंतर  मन का।।
पर वो न समझे जिनको समझा...
था सार मैंने आपने जीवन का।।

महकी महकी चंचल तुमसी मैं...
पर पल पल प्रेम को तरसी मैं।।
कभी  मुरझायी  कभी लर्जायी...
वन विराह की बदली बरसी मैं।।

सोचा  था  मैंने  रजनी...
मैं उनके गले का हर बनूँ।।
महका दूँ तन मन जीवन...
ऐसा अनुपम उपहार बनूँ।।

पर मन की मेरे मन में ही रही...
जो  कहनी  थी वो भी  न कही।।
तुम बनो मेरे राजेश प्रिये ...
मैं  कहलाऊं  रजनी  तुम्हारी ।।
मैं  कहलाऊं  रजनी  तुम्हारी ।।

पिंकी वाजपेयी ..............

2 टिप्‍पणियां:

  1. तुम बनो मेरे राजेश प्रिये ...
    मैं कहलाऊं रजनी तुम्हारी ।।
    मैं कहलाऊं रजनी तुम्हारी ।।....आमीन!
    बहुत सुन्दर दिल से निकली आवाज ..

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