मंगलवार, 10 नवंबर 2009

मतवाला सा चाँद...

सर्दियों की रात
और ठिठुरा हुआ सा चाँद ...
धुंध के आगोश में
लिपटा हुआ सा चाँद ...


तनहा आकेला खोजता
एक पनाह नन्हा सा चाँद ...
कभी छत पर कभी मुंडेर पर
कभी सीखचों के बीच से
झांकता अदना सा चाँद ...


यायावरी सा घूमता
कभी देश भी परदेश भी...
पल यहाँ पल में वहाँ
मिनटों में होती पेशगी...
फिर भी बेचारा वे पनाह
मस्त मतवाला सा चाँद...


फिक्र में दुनिया की वो
नंगे बदन है जगता...
भेद लाखों हैं ह्रदय में
मूक सा वह ताकता...
हर रात जाने किस गम में घुलता
वह पूर्णिमा का चाँद ||