शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

सपनों के पंख

सपनों के पंख लिए फिरती थी |
मैं भी एक उमंग लिए फिरती थी ||

आरमान था मुझे भी ,
जन्नत के सितारों का..
इस लिए जुल्फों को ,
हर पल संभाला करती थी ||


सपनों के पंख लिए फिरती थी |
मैं भी एक उमंग लिए फिरती थी ||

उसकी तस्बीर सिरहाने रख कर,
अपने जज्बात बयां करती थी |
कुछ सवालों से जवाव ,और कुछ
जवावों से सवाल किया करती थी ||


सपनों के पंख लिए फिरती थी |
मैं भी एक उमंग लिए फिरती थी ||

छू लूँ आसमां मैं ,
ये तमन्ना थी | मेरी भी..
इस लिए तकदीर में,
मेहनत के पैबंद सिया करती थी ||

सपनों के पंख लिए फिरती थी |
मैं भी एक उमंग लिए फिरती थी ||

3 टिप्‍पणियां:

  1. सपनों के पंख लिए फिरती थी |
    मैं भी एक उमंग लिए फिरती थी ||

    बहुत बढ़िया रचना ....

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  2. इस लिए तकदीर में,
    मेहनत के पैबंद सिया करती थी ||
    Badi alahida,anoothi abhiwyakti!

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