और ठिठुरा हुआ सा चाँद ...
धुंध के आगोश में
लिपटा हुआ सा चाँद ...
तनहा आकेला खोजता
एक पनाह नन्हा सा चाँद ...
कभी छत पर कभी मुंडेर पर
कभी सीखचों के बीच से
झांकता अदना सा चाँद ...
यायावरी सा घूमता
कभी देश भी परदेश भी...
पल यहाँ पल में वहाँ
मिनटों में होती पेशगी...
फिर भी बेचारा वे पनाह
मस्त मतवाला सा चाँद...
फिक्र में दुनिया की वो
नंगे बदन है जगता...
भेद लाखों हैं ह्रदय में
मूक सा वह ताकता...
हर रात जाने किस गम में घुलता
वह पूर्णिमा का चाँद ||
वाह! चाँद पर अभिकल्पना प्यारी सी लगी.
जवाब देंहटाएंसुलभ - यादों का इंद्रजाल
Matwaalee kavita ke saath sundar tasveer...!
जवाब देंहटाएंhttp://shamasansmaran.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://baagwaanee-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://lalitlekh.blogspot.com
http://fiberart-thelightbyalonelypath.blogspot.com
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढ़े और अपनी बहुमूल्य
टिप्पणियां करें
Matwaalee kavita ke saath sundar tasveer
जवाब देंहटाएंsanjay bhaskar
bahut bahut khoob likhte raho dost swagat hai.....
जवाब देंहटाएंJai Ho mangalmay Ho
चाँद की चाँद सी रचना.
जवाब देंहटाएंजारी रहें. शुभकामनाएं.
--
महिलाओं के प्रति हो रही घरेलू हिंसा के खिलाफ [उल्टा तीर] आइये, इस कुरुती का समाधान निकालें!
great expressions
जवाब देंहटाएंnarayan narayan
जवाब देंहटाएंचाँद की व्यथा का सुन्दर मानवीय चित्रण ...
जवाब देंहटाएं